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जननी

जिनके चरणों में चारो धाम है
हे जननी ! तुझे शत् शत् प्रणाम है।

माँ होती है धरती पे देवी स्वरुप
इनकी आँचल की छाया में पलते सभी
जिनकी ममता का ना कोई दाम है।
हे जननी ! तुझे शत् शत् प्रणाम है।

जिनकी ममता को पाने के खातिर यहाँ
देवता भी आये थे स्वर्ग से यहाँ
ऐसी नारी में सति अनुसुइया महान है
हे जननी ! तुझे  शत् शत् प्रणाम है।

जिनकी दमान में खुशियो का सारा जहाँ
जिनकी होठो पे रहती है मुस्कान सदा
जो ना होती दुखो में परेशान है।
हे जननी ! तुझे शत् शत प्रणाम है।

जो औरो की खुशियो के खातिर सदा
अपनी खुशियो को कर देती कुर्बान है
ऐसी ममता की देवी को कैसे भला
कोई करता यहाँ पे अपमान है
हे जननी ! तुझे शत शत प्रणाम है।

जी करता इसकी वन्दना करू मै सदा
जो ना करे कदर अपनी माता का
वो इस धरती में कर्महीन समान हैं।
हे जननी ! तुझे शत शत प्रणाम है।

मुकेश कुमार चौधरी 

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