प्यार का रोग
एक जुर्म किया है मैंने
एक दोस्त बना बैठे हम।
कहते है ! प्यार सभी जिसको
वो रोग लगा बैठे हम।
ये कैसी बेचैनी है
ये कैसी बेताबी है।
जाने अनजाने में कैसा
एक दर्द छुपा बैठे हम।
देखा जब पहली बार उसे
पूनम की चाँदनी रातो को।
वो नीलकुसुम मृगनैनी सी
जादू कर बैठी मेरे दिल पे।
हर वक़्त ख्यालो में उसकी
खोया-खोया सा रहता हूँ।
अपना अब सबकुछ भूल चूका
बस याद उसी को करता हूँ।
मुकेश कुमार चौधरी