जननी
Posted: 25-03-2018
| Writer - Mukesh Kumar Chaudhary
जिनके चरणों में चारो धाम है,
हे जननी ! तुझे शत् शत् प्रणाम है।
माँ होती है धरती पे देवी स्वरुप
इनकी आँचल की छाया में पलते सभी
जिनकी ममता का ना कोई दाम है।
हे जननी ! तुझे शत् शत् प्रणाम है।
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आपन गांव
Posted: 21-03-2018
| Writer - Chandan Kumar Pandit
चल बबुआ तोहके घुमा दिही गांव
खेतवा ,बाधारवा ,पिपरवा के छाँव
चल बबुआ...
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मेरी माँ
Posted: 18-03-2018
| Writer - Chandan Kumar Pandit
मैंने जब से होश संभाला
देखा एक दया और
ममता की मूर्ति को
जो खुद भूखे रहकर
मुझे खिलाती थी भरपेट ,
जब मुझे लग जाती थी ,
छोटी सी चोट ...
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सैनिको तुम्हे नमन
Posted: 15-03-2018
| Writer - GunJan Kumar Pandit
वीर सैनिको तुम्हे नमन !!
मातृभूमि के वीर सपूतों ,तुम्हे बार बार वंदन ,
अपनी जान देकर तुम ,हम लोगों के प्राण बचाते हो ,
छाती छलनी हो गोलियों सें ,फिर भी तुम मुस्कुराते हो
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भगवान का तोहफा ... दोस्ती
Posted: 15-03-2018
| Writer - Ranjan Kumar Pandit
कुछ रिश्ते हैं खुदा बनाते ,कुछ खुद ही बन जाते हैं !
उस अनजाने रिश्ते में न जाने कैसे हम बंध जाते हैं !!
दोस्ती का ये अनमोल बंधन बहुत ही प्यारा होता है ,
चोट लग जाती एक को भी ,तो दूसरे को दर्द भी होता है ..
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माँ का दिल
Posted: 15-03-2018
| Writer - Kundan Kumar pandit
शायद भूल गए हो ,मुझको है ये याद दिलाना ,
हैं किये उपकार अगणित माँ का दिल कभी नहीं दुखाना ,
खून से सिचा है अपने 9 माह उदर में ढोया ,
माँ की आँचल के तले ,सुख चैन की तू नींद सोया ...
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लोकतंत्र
Posted: 15-03-2018
| Writer - Kundan Kumar pandit
लोकतंत्र के परब आईल कहला बिना
रहाते नईखे
मत केकरा के दान करी
बुझाते नइखे ।
बड़का-बड़का पोस्टर पे बा
बड़हन-बड़हन वादा, ..
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शहादत
Posted: 15-03-2018
| Writer - Chandan Kumar Pandit
एक दिन शाम में ,मै कही जा रहा था
मन ही मन ,ठंडी मस्त हवाओं के संग
कुछ गुनगुना रहा था
देखा सामने से आ रहे थे कुछ लोग ,
भूखे..अधनंगे और काफी हताश..
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मानवता
Posted: 01-03-2018
| Writer - Ranjan Kumar Pandit
बड़ी जलन है इस ज्वाला में ,जलना कोई खेल नही
भागम भाग की इस दुनिया मे मानवता का मेल नही
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होली
Posted: 01-03-2018
| Writer - Ranjan Kumar Pandit
होली आई खुशियों का त्यौहार है लाई,आपस में सब मिल रहे हैं जैसे भाई भाई..
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माँ की झप्पी
Posted: 23-02-2018
| Writer - Ranjan Kumar Pandit
आज बहुत मिस कर रहा ,अपने भाईयों का प्यार दुलार
याद आ रही छोटे भाई से की गयी ओ हर मीठी तकरार
आज माँ की जादू की झप्पी पाने का जी चाहता है
पता न क्यूँ अभी इसी वक्त ,अपने घर लौट जाने का जी चाहता है
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आदमी और कुत्ता
Posted: 23-02-2018
| Writer - Ranjan Kumar Pandit
आज मैंने जैसे ही दरवाजा खोला
मेरा डॉगी मुझसे बोला !
साहब !!
एक बात बताइए ,आदमी और कुत्ता में श्रेष्ठ कौन है ?
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बावला दिल
Posted: 22-02-2018
| Writer - Ranjan Kumar Pandit
किसको भुलु क्या याद करू,अपने रब से क्या फ़रियाद करू
कैसे लिखू कोरे कागज पे ,दिल का अपना पैगाम
जिसको चाहा जान से बढ़कर ,उसको कैसे कर दू बदनाम..
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मन का कोरा दर्पन
Posted: 04-06-2018
| Writer - vishnu saxena
मन का कोरा दर्पन तेरे नाम करूँ।
भँवरों का मदमाता गुंजन,
तितली की बलखाती थिरकन,
भीनी-भीनी गंध पुष्प की,
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तृप्त मयूरी हो ना पाई
Posted: 04-06-2018
| Writer - vishnu saxena
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रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा
Posted: 04-06-2018
| Writer - vishnu saxena
रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा, एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं।
तुमने पत्थर सा दिल हमको कह तो दिया पत्थरों पर लिखोगे मिटेगा नहीं।
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रश्मिरथी -सप्तम सर्ग
Posted: 22-03-2018
| Writer - Ramdhari Singh Dinkar
निशा बीती, गगन का रूप दमका,
किनारे पर किसी का चीर चमका।
क्षितिज के पास लाली छा रही है,
अतल से कौन ऊपर आ रही है ?
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रश्मिरथी -षष्ठ सर्ग
Posted: 22-03-2018
| Writer - Ramdhari Singh Dinkar
नरता कहते हैं जिसे, सत्तव
क्या वह केवल लड़ने में है ?
पौरूष क्या केवल उठा खड्ग
मारने और मरने में है ?
तब उस गुण को क्या कहें
मनुज जिससे न मृत्यु से डरता है ?
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रश्मिरथी -पंचम सर्ग
Posted: 22-03-2018
| Writer - Ramdhari Singh Dinkar
आ गया काल विकराल शान्ति के क्षय का,
निर्दिष्ट लग्न धरती पर खंड-प्रलय का ।
हो चुकी पूर्ण योजना नियती की सारी,
कल ही होगा आरम्भ समर अति भारी ।
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रश्मिरथी -चतुर्थ सर्ग
Posted: 22-03-2018
| Writer - Ramdhari Singh Dinkar
प्रेमयज्ञ अति कठिन कुण्ड में कौन वीर बलि देगा ?
तन, मन, धन, सर्वस्व होम कर अतुलनीय यश लेगा ?
हरि के सन्मुख भी न हार जिसकी निष्ठा ने मानी,
धन्य-धन्य राधेय ! बन्धुता के अद्भुत अभिमानी ।
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रश्मिरथी-तृतीय सर्ग
Posted: 22-03-2018
| Writer - Ramdhari Singh Dinkar
हो गया पूर्ण अज्ञात वास,
पाडंव लौटे वन से सहास,
पावक में कनक-सदृश तप कर,
वीरत्व लिए कुछ और प्रखर,
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रश्मिरथी-द्वितीय सर्ग
Posted: 22-03-2018
| Writer - Ramdhari Singh Dinkar
शीतल, विरल एक कानन शोभित अधित्यका के ऊपर,
कहीं उत्स-प्रस्त्रवण चमकते, झरते कहीं शुभ निर्झर।
जहाँ भूमि समतल, सुन्दर है, नहीं दीखते है पाहन,
हरियाली के बीच खड़ा है, विस्तृत एक उटज पावन।
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रश्मिरथी-प्रथम सर्ग
Posted: 22-03-2018
| Writer - Ramdhari Singh Dinkar
'जय हो' जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को,
जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को।
किसी वृन्त पर खिले विपिन में, पर, नमस्य है फूल,
सुधी खोजते नहीं, गुणों का आदि, शक्ति का मूल
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शहीद-स्तवन (कलम, आज उनकी जय बोल)
Posted: 22-03-2018
| Writer - Ramdhari Singh Dinkar
कलम, आज उनकी जय बोल
जला अस्थियाँ बारी-बारी
छिटकाई जिनने चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल ।
कलम, आज उनकी जय बोल ।
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किसको नमन करूँ मैं भारत?
Posted: 22-03-2018
| Writer - Ramdhari Singh Dinkar
तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ, मैं ?
मेरे प्यारे देश ! देह या मन को नमन करूँ मैं ?
किसको नमन करूँ मैं भारत ? किसको नमन करूँ मैं ?
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बर्र और बालक
Posted: 22-03-2018
| Writer - Ramdhari Singh Dinkar
सो रहा था बर्र एक कहीं एक फूल पर,
चुपचाप आके एक बालक ने छू दिया
बर्र का स्वभाव,हाथ लगते है उसने तो,
ऊँगली में डंक मार कर बहा लहू दिया
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पढ़क्कू की सूझ
Posted: 22-03-2018
| Writer - Ramdhari Singh Dinkar
एक पढ़क्कू बड़े तेज थे, तर्कशास्त्र पढ़ते थे,
जहाँ न कोई बात, वहाँ भी नए बात गढ़ते थे।
एक रोज़ वे पड़े फिक्र में समझ नहीं कुछ न पाए,
"बैल घुमता है कोल्हू में कैसे बिना चलाए?"
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चूहे की दिल्ली-यात्रा
Posted: 22-03-2018
| Writer - Ramdhari Singh Dinkar
चूहे ने यह कहा कि चूहिया! छाता और घड़ी दो,
लाया था जो बड़े सेठ के घर से, वह पगड़ी दो।
मटर-मूँग जो कुछ घर में है, वही सभी मिल खाना,
खबरदार, तुम लोग कभी बिल से बाहर मत आना!
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चांद का कुर्ता
Posted: 22-03-2018
| Writer - Ramdhari Singh Dinkar
हठ कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला,
‘‘सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला...
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मिर्च का मज़ा
Posted: 22-03-2018
| Writer - Ramdhari Singh Dinkar
एक काबुली वाले की कहते हैं लोग कहानी,
लाल मिर्च को देख गया भर उसके मुँह में पानी।
सोचा, क्या अच्छे दाने हैं, खाने से बल होगा,
यह जरूर इस मौसम का कोई मीठा फल होगा।
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