आज फिर से मुस्कराने का जी चाहता है
तेरी यादो में खो जाने का जी चाहता है ,
शायद तू सपनो में ही मिल जाये ,इसलिए
अब तो सदा के लिए सो जाने का जी चाहता है
कभी तो कोई इस दिल की बात समझेगा
आएगा समय जब कोई मेरे जज्बात समझेगा
पोछेगा कोई मेरे भी अश्क ,और सब हालात समझेगा
जो मेरे गम को गम और खुशी को अपनी कायनात समझेगा
हम वीरों के वंशज है ,मिट्टी में तुम्हे मिला देंगे !
कर मत दू:साहस रे पाक ,वर्ना 71 की याद दिला देंगे !!
इस अंधियारी रात में ,जुगनू के घर का कोई पता बता दे !!
ये खुदा मत ले इतने इम्तिहाँ ,अब तो मेरी खता बता दे !!
ये दोस्त मेरे एहसानों का कर्ज बस इतना चूका देना
मुझे याद करके आप थोड़ा सा मुस्कुरा देना !!
अपनी खुशियों के बदले ,उनके गम हर बार माँग लू
करे खुदा यदि सौदा, तो अपनी दोस्त की मुश्किलें उधार माँग लू
न तमन्ना मुझे किसी दौलत की ,न अपनी खुशियों की है दरकार
हे प्रभु कुछ देना चाहो ,तो देना हर जन्मो में मुझे ऐसा ही सच्चा यार
आज ओ फिर देखके मुस्कुराया है !
लगता है कोई फिर काम निकल आया है !!
इस अंधियारी रात में ,जुगनू के घर का कोई पता बता दे !
ये खुदा मत ले इतने इम्तिहाँ ,अब तो मेरी खता बता दे !!
तपती हुई ज़मीं है जलधार बाँटता हूँ
पतझर के रास्तों पर मैं बहार बाँटता हूँ
ये आग का दरिया है जीना भी बहुत मुश्क़िल
नफ़रत के दौर में भी मैं प्यार बाँटता हूँ
विष्णु सक्सेना
अब भी हसीन सपने आँखों में पल रहे हैं
पलकें हैं बंद फिर भी आँसू निकल रहे हैं
नींदें कहाँ से आएँ बिस्तर पे करवटें ही
वहाँ तुम बदल रहे हो यहाँ हम बदल रहे हैं
विष्णु सक्सेना
बरसात भी नहीं है बादल गरज रहे हैं
सुलझी हुई लटे हैं और हम उलझ रहे हैं
मदमस्त एक भँवरा क्या चाहता कली से
तुम भी समझ रहे हो हम भी समझ रहे हैं
विष्णु सक्सेना
ओ जवान धड़कनों तुम, मेरा सलाम लेना
सीखा नहीं है मैंने, हाथों में जाम लेना
फ़िसलन बहुत है यारो, राहों में मुहब्बत की
कहीं मैं फिसल न जाऊँ, तुम हाथ थाम लेना
विष्णु सक्सेना
एक हाथ में दिल उनके एक हाथ में खंजर था
चेहरे पे दोस्त का मुखौटा अजीब सा मंजर था
मैं भारत वर्ष का हरदम अमिट सम्मान करती हूँ
यहां की चंदनी मिट्टी का ही गुणगान करती हूँ
मुझे इक्षा नहीं है स्वर्ग जाकर मोक्ष पाने की
तिरंगा हो कफ़न मेरा यही अरमान रखती हूँ
मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार
इस लिए चल न सका कोई भी ख़ंजर मुझ पर
मेरी शह-रग पे मिरी माँ की दुआ रक्खी थी
भारी बोझ पहाड़ सा कुछ हल्का हो जाए
जब मेरी चिंता बढ़े माँ सपने में आए
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई
किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा
घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
लड़कियाँ धान के पौदों की तरह होती हैं
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
अब जुदाई के सफ़र को मेरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
एकता बाँटने में माहिर है ,
खुद कि जड़ काटने में माहिर है
हम क्या थूके उस सख्स पे जो खुद ,
थूक कर चाटने में माहिर है
चंदा की चकोरी से कोई बात ना होती,
जो तुमसे हमारी ये मुलाकात न होती |
इस शहर के लोलोगों में कोई बात है ‘अम्बर’,
वरना तो कभी इतनी हसीं रात ना होती ||
मत आना मेरे जनाज़े में, तेरे फूलों की दरकार नहीं,
प्यार किया था मैंने, तुझ जैसा कोई व्यापार नहीं।
19-08-2023
ओ बेवफा आज फिर मुझे रुला गई
.बैठा था तन्हा तभी उसकी याद आ गई
समझ नहीं आया क्या थी उस पगली की लाचारी...
या बेवफाई है उसकी पैदाइशी बिमारी...
19-08-2023इस अंधियारी रात में ,जुगनू के घर का कोई पता बता दे !
ये खुदा मत ले इतने इम्तिहाँ ,अब तो मेरी खता बता दे !!
22-02-2018हम वीरों के वंशज है ,मिट्टी में तुम्हे मिला देंगे !
कर मत दू:साहस रे पाक ,वर्ना 71 की याद दिला देंगे !!
22-02-2018चारो धाम कर ले कोई ,या करले हर तीज त्योहार
माँ ही अगर खुश नहीं तो सब कुछ है बेकार